काल सर्प दोष
- Sunil Thalia
- 2 मई 2018
- 2 मिनट पठन

आधुनिक ज्योतिष और कुछ विद्वान् पंडितो के मतानुसार किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु एवं केतु के बीच आ जाते हैं तो व्यक्ति कालसर्प योग से पीडित हो जाता है। ज्योतिषियों ने काल सर्प दोष के 12 मुख्य प्रकार बताएं हैं:- 1. अनंत, 2. कुलिक, 3. वासुकि, 4. शंखपाल, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. तक्षक, 8. कर्कोटक, 9. शंखनाद, 10. घातक, 11. विषाक्त और 12. शेषनाग। क्या वास्तव में इस तरह के किसी योग का हमारे प्राचीन ज्योतिष में किसी प्रकार का कोई उल्लेख है? क्या इसका कोई वैज्ञानिक आधार है?
वराहमिहिर ने अपनी संहिता 'जानक नभ संयोग' में इसका 'सर्पयोग' के नाम से उल्लेख किया है, काल सर्पदोष नहीं। वहीं, 'सारावली' में भी 'सर्पयोग' का ही वर्णन मिलता है। यहां भी काल और दोष शब्द नहीं मिलता। पुराने मूल या वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में कालसर्प दोष का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। सम्पूर्ण ज्योतिषशास्त्र ताराशास्त्र पर आधारित है, जिसमे 12 राशियां, 7 पूर्ण ग्रह और 2 छाया ग्रह है! ये 2 छाया ग्रह राहु और केतु है! वास्तव में राहु और केतु हमारी पृथ्वी के ही 2 छोर क्रमश: उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव की छाया है जो सूर्य के प्रकाश के कारण पृथ्वी पर पड़ती है एवं पृथ्वी के वातावरण को प्रभावित करती है! इसीलिए राहु से केतु हमेशा 180 अंश पर होता है! लेकिन कुछ लोभी ज्योतिषियों ने राहु व केतु को काल यानी मृत्यु और सर्प यानी सांप अर्थात मृत्यु का सांप कह कर डरा दिया है जो की सिवाय ढोंग के कुछ भी नहीं है! काल सर्प योग पूर्णतया भ्रामक और कपोल कल्पित है! सत्यता तो ये है की कुंडली के 12 भावों में राहु और केतु के फल अलग अलग होते है,काल सर्प दोष कुछ नहीं यह राहू का दोष है। दरअसल, इस योग या दोष के लिए राहु जिम्मेदार होता है राहु की परेशानी हमेशा अचानक खड़ी होने वाली परेशानी होती है, जो अचानक बिजली की तरह आती है और उसी तरह चली भी जाती है। काला जादू, तंत्र, टोना, आदि राहु ग्रह अपने प्रभाव से करवाता है। अचानक घटनाओं के घटने के योग राहु के कारण ही होते हैं। राहु हमारे उस ज्ञान का कारक है, जो बुद्धि के बावजूद पैदा होता है, जैसे अचानक कोई घटना देखकर कोई आइडिया आ जाना या अचानक उत्तेजित हो जाना। स्वप्न का कारक भी राहु है। भयभीत करने वाले स्वप्न आना या चमक कर उठ जाना भी राहु के बुरे प्रभाव के लक्षण माने गए हैं। अतः जन्मकुंडली में पहले राहु की पूरी तरह समीक्षा की जाए और फिर उस समीक्षा के अनुसार ही उपाय किये जाए!
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