पितृ दोष
- Sunil Thalia
- 2 मई 2018
- 2 मिनट पठन

वैदिक ग्रंथो के आधार पर पूर्वजो के द्वारा किये गए कर्मो का फल आने वाली पीड़ियों को तब तक झेलना पड़ता है जब तक की आने वाली पीढ़िया पूर्वजो द्वारा किये गए बुरे कर्मों का निवारण न करवाए ! कई विद्वानों का मनना है की हमारे पूर्वजो का यदि पिंड दान और श्राद न किया जाए तो हमारे पूर्वज हमें परेशानं करते है और इसे ही पित्र दोष कहते है ! परन्तु मेरा मानना है की हमारे पितरों द्वारा किये गए कार्य की हमें सजा मिलती है! परन्तु यंहा पितृ का अर्थ है हमारे पिछले जन्म के साथी, फिर वो चाहे पिता हो,भाई, बहन, पुत्र, पत्नी,या हमारी अपनी आत्मा ही क्यों न हो, जिनके द्वारा किये गए दोष में हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भागीरदार रहे हो! पितृ दोष का अर्थ केवल पिछले जन्म से नहीं होता, अपितु ये हमारे पिछले कई सैकड़ों-हज़ारों जन्मों के दोष हो सकते है! चूँकि पितृ दोष का आधार हमारे पिछले जन्मों के कर्मो से है इसलिए इस जन्म में इनका निवारण भी हमारे कर्म ही करेंगे! अतः इस दोष से डरने की आवश्यकता नहीं है! यह दोष अधिकांशतः कुंडलियों में पाया जाता है! कुंडली का नवां घर यह बताता है जातक पिछले जन्म के कौनसे पुण्यकर्म अपने साथ इस जन्म में लेकर आया है! पितृ ऋण कई प्रकार का होता है जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। पित्र दोष के निवारण के लिए अच्छे कर्म करे ! ताकि आपके द्वारा किये गए अच्छे कर्मो से आपके पूर्वजों द्वारा किये गए बुरे कर्मों का अंत हो और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त हो! आपकी संतान भी आपके कर्मो से प्रेरित होकर अच्छी जीवन शैली को अपनाएगी और आपका सम्मान करेगी ! और आपकी आने वाली पीढ़ियों की कुंडली में पित्र दोष नहीं बनेगा !
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