शनि साढ़ेसाती
- Sunil Thalia
- 3 मई 2018
- 2 मिनट पठन

समस्त ग्रहों में शनि सबसे मंद गति का ग्रह है जिसे 30 अंश चलने में 30 माह का समय लगता है! अर्थात शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष या 30 माह भ्रमण करता है उसके पश्च्यात दूसरी राशि में चला जाता है! इसे ही शनि की ढैया बोलै जाता है! आधुनिक ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार अगर आपकी जन्मकुंडली में जन्म के चंद्र से बारहवें, पहले और दूसरी राशि से शनि का भ्रमण होता हो तो आप शनि के प्रभाव में कहे जाएंगे! शनि जिस भी राशि में होता है उसका प्रभाव पहले व बाद की राशि पर पड़ने से शनि की अवधि कुल मिलाकर साढ़े सात वर्ष तक होती है। इसलिए, इस अवधि को शनि की साढ़े साती के नाम से पुकारा जाता है। हर एक जातक की कुंडली में जब साढ़े साती की शुरुआत होती है तब उसको इन तीन चरणों में से होकर गुजरना पड़ता है। तीन चरणों में से दूसरा चरण सबसे कठिन माना जाता है। सामान्य रूप से हर एक आदमी साढ़ेसाती को लेकर डरा व सहमा-सा रहता है। लेकिन मेरे अनुसार यह तथ्य पूर्णतः मिथ्या और भ्रामक है! ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य तारामंडल का सबसे प्रभावशाली ग्रह है जिसका प्रभाव क्षेत्र 15 अंश का होता है अर्थात सूर्य के प्रभाव क्षेत्र में जो भी ग्रह आता है, वह अस्त माना जाता है! इस प्रकार कुंडली में सूर्य स्थापित होने वाले घर से 15 अंश पहले और 15 अंश बाद तक सूर्य का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है! यद्यपि शनि सूर्यपुत्र माना गया है! तथापि यह कैसे संभव है की चंद्र स्थापित होने वाले एक घर पहले से शनि अपना प्रभाव डालना शुरू कर दे और यही स्तिथि चंद्र के बाद वाले घर पे भी लागु हो! असल में इस तथ्य का वैज्ञानिक विश्लेषण करने पर आपको पता चलेगा की ज्योतिष शास्त्र में चंद्र शनि की युति विष योग कहलाती है, जिसकी वजह से मानसिक अशांति, तनाव, काम आदि में कुछ रुकावट पैदा हो सकती है! लेकिन वो भी अधिकतम 30 माह तक! इस तरह इसे शनि साढ़े साती या साढ़े सात साल के लम्बे अरसे से जोड़ना पूर्णतः आधारहीन है! वास्तविकता में शनि न्यायाधीश हैं जो हमारे कर्मो के अनुसार फल देने के लिए बाध्य है! लेकिन, जो जातक सभी की मदद करते हैं, कपट नहीं करते, सदा पुण्य कर्म करते है, ईमानदार रहते हैं, अभिमान नहीं करते हैं उन सभी के लिए शनि कभी भी बाधा नहीं बनते हैं। एेसे सच्चरित्र जातकों के ऊपर हमेशा शनि की कृपा बनी रहती है।
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