गंडमूल नक्षत्र
- Sunil Thalia
- 2 मई 2018
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ज्योतिषशास्त्र में सम्पूर्ण बारह राशियों को 27 नक्षत्रों में बांटा गया है! हर एक राशि 30 अंश की मानी जाती है एवं प्रत्येक नक्षत्र 10 अंश का होता है! 28 वां नक्षत्र अभिजीत है जो की मूलतः गौण है! किसी जातक का जन्म किस नाड़ी में हुआ है, और उसके नाम का पहला अक्षर क्या होना चाहिए? इसका निर्धारण जातक के जन्म के नक्षत्र से ही हो पाता है! जिस तरह हर एक ग्रह कुछ राशियों का स्वामी होता है उसी प्रकार 27 नक्षत्र भी 12 राशियों में विभाजित होते है! जिनमें से ज्येष्ठा, आश्लेषा, रेवती,मूल, मघा और अश्विनी यह नक्षत्र मूल नक्षत्र कहलाये जाते है आमतौर पर ये कहा जाता है की इन नक्षत्रों के अन्दर पैदा होने वाला जातक किसी न किसी प्रकार से पीडित होता है और अगर इन नक्षत्र को शांत नही करवाया गया तो यह जातक को कुछ महिनो के अन्दर ही दुष्प्रभाव देना शुरू कर देता है। असल में इसके पीछे जो वैज्ञानिक कारण है वो ये की हर एक इंसान के जन्म और मृत्यु का समय पहले से ही निर्धारित है! लेकिन किसी कारणवश व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाने पर उसकी आत्मा को दूसरा शरीर तब तक नहीं मिलता, जब तक की इस लोक में उसका भोगकाल पूरा नहीं हो जाता! अतः उपरोक्त 6 नक्षत्रो में जातक का जनम होने पर यह माना जाता है की उसका पिछला जनम अकाल मृत्यु के कारण बीच में ही समाप्त हो गया था जिसके कारण उसके अंतिम संस्कार पूर्ण नहीं हो पाए! अतः जो संस्कार पिछले जनम में पूर्ण नहीं हो पाए, उनकी पूर्ति के लिए ही इस जनम में जातक के जनम के पश्च्यात मूल की पूजा करवाई जाती है!
बहुत सुंदर बताया है गंडमूल के बारे में मेरा सवाल यह है किसी व्यक्ति को अगर दो बच्चे हुए और बड़ा बेटा मूल नक्षत्र और छोटा बेटा आश्लेषा नक्षत्र में हुए तो ऐसा दोनो बेटे मूल में पैदा हुये तो क्या करे या क्या कारण हो सकता है।